अनुभूति में
अमरनाथ श्रीवास्तव की
रचनाएँ- नए गीत
अनुपस्थिति मेरी
जहाँ आँखों में रहा
प्यादे से
वज़ीर
फाँस जो छूती
रगों को
मैं
बहुत खुश हूँ
गीतों में-
पुण्य फलीभूत हुआ
लोग खड़े हैं इंतज़ार में
सारी रैन जागते बीती
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प्यादे से वज़ीर
प्यादे से वज़ीर बनते हैं ऐसी बिछी
बिसात
नये भोर का भ्रम देती है निखर गयी है रात
कई एक चेहरे, चेहरों के
त्रास और संत्रास
भीतर तक भय से भर देते
हास और परिहास
नहीं बचा `साबुत' कद कोई ऐसा उपल निपात
बंद गली के सन्नाटों में
कोई दस्तक जैसी
भर देती हैं खालीपन से
बातें कैसी-कैसी
नई-नई अनुगूँजें बनते नये-नये अनुपात
लोककथाएँ जिनमें पीड़ा
का अनंत विस्तार
हम ऐसे अभ्यस्त कि
खलता कोई भी निस्तार
बातों से बातें उठती हैं सब भूले औकात।
1 दिसंबर 2007 |