पुण्य फलीभूत हुआ
पुण्य फलीभूत हुआ कल्प है नया
सोने की जीभ मिली
स्वाद तो गया
छाया के आदी हैं गमलों के पौधे
जीवन के मंत्र हुए सुलह और सौदे
अपना जड़ भूल गई
द्वार की जया
हवा और पानी का अनुकूलन इतना
बंद खिड़कियाँ बाहर की सोचें कितना
अपनी सुविधा से है
आँख में दया
मंज़िल दर मंज़िल है एक ज़हर
धीमा
सीढ़ियाँ बताती है घुटनों की सीमा
मुझसे तो ऊँची है
डाल पर बया
9 अगस्त 2007 |