ध्वजारोहण
कर ध्वजारोहण
सजग संघर्ष का
नींद के
ये स्वप्न-छल तेरे नहीं!
ढूँढ़ अब संदेशवाहक
हर्ष का
दर्द में भीगे कंवल
तेरे नहीं!
फूल-घर कोई नहीं तो क्या हुआ
छाँव अब कुछ कम नहीं आकाश की
ले सलाख़ें हाथ में तपती हुई
सुर्ख हैं आंखें अंधेरे-पाश की
बन चितेरा
त्याग के उत्कर्ष का
स्वार्थपरता के महल
तेरे नहीं!
यह भिखारिन रात क्या देगी तुझे
भोर की उजली किरन का मीत तू
सर्द सन्नाटे से कैसी दोस्ती
है अनोखे जागरण का गीत तू
तू सृजन है
आग के नववर्ष का,
कंपकंपाते सर्द पल तेरे नहीं!
२४ फरवरी २००६
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