सुभद्रा कुमारी
चौहान
जन्म : सन १९०४ में
इलाहाबाद जिले के निहालपुर गाँव में।
मृत्यु : सन १९४८ में एक मोटर दुर्घटना में।
इलाहाबाद में सन १९२१ के असहयोग
आंदोलन के प्रभाव में अध्ययन को बीच में ही छोड़कर सक्रिय
राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया और कई बार जेल जाना पड़ा।
विवाह के अनन्तर वे जबलपुर में बस गईं।
सुभद्रा जी की काव्य साधना के
पीछे उत्कट देश प्रेम, अपूर्व साहस तथा आत्मोत्सर्ग की प्रबल
कामना है। इनकी कविता में सच्ची वीरांगना का ओज और शौर्य प्रकट
हुआ है। हिंदी काव्य जगत में ये अकेली ऐसी कवयित्री हैं
जिन्होंने अपने कंठ की पुकार से लाखों भारतीय युवक-युवतियों को
युग-युग की अकर्मण्य उपासी को त्याग, स्वतंत्रता संग्राम में
अपने को समर्पित कर देने के लिए प्रेरित किया। वर्षों तक सुभद्रा
जी की 'झांसी वाली रानी थी' और 'वीरों का कैसा हो वसंत' शीर्षक
कविताएँ लाखों तरुण-तरुणियों के हृदय में आग फूँकती रहेंगी।
सुभद्रा जी की भाषा सीधी, सरल
तथा स्पष्ट एवं आडंबरहीन खड़ी बोली है। मुख्यत: वीर और वात्सल्य
रस इन्होंने चित्रित किए हैं। अपने काव्य में मोहक चित्र भी
अंकित किये हैं जिनमें वात्सल्य की मधुर व्यंजना हुई है।
प्रमुख कृतियाँ :
काव्य संग्रह : 'मुकुल' और 'त्रिधारा'।
कहानी संकलन : 'सीधे-सादे चित्र', 'बिखरे मोती' और 'उन्मादिनी'
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अनुभूति में
सुभद्रा कुमारी चौहान
की रचनाएँ-
कविताओं में--
उल्लास
झिलमिल तारे
बचपन
मधुमय प्याली
मेरा जीवन
गौरव ग्रंथ में--
झाँसी की रानी
संकलन में--
वसंती हवा -
वीरों का कैसा हो वसंत
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