बचपन
बारबार आती है मुझको मधुर याद
बचपन तेरी
गया, ले गया तू जीवन की सब से मस्त खुशी मेरी।।
चिन्ता-रहित खेलना-खाना वह
फिरना निर्भय स्वच्छन्द।
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनन्द?
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था
छुआछूत किसने जानी?
बनी हुई थी वहाँ झोपड़ी और चीथड़ों में रानी।
किये दूध के कुल्ले मैंने चूस
अँगूठा सुधा पिया।
किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया।।
रोना और मचल जाना भी क्या आनन्द
दिखाते थे
बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे।।
मैं रोई, माँ काम छोड़कर आई,
मुझको उठा लिया।
झाड़-पोंछ कर चूम-चूम, गीले गालों को सुखा दिया।।
दादा ने चन्दा दिखलाया नेत्र
नीर-युत दमक उठे।
धुली हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे।।
यह सुख का साम्राज्य छोड़कर मैं
मतवाली बड़ी हुई।
लुटी हुई, कुछ ठगी हुई-सी दौड़ द्वार पर खड़ी हुई।।
लाजभरी आँखें थीं मेरी मन में
उमंग रंगीली थी
तान रसीली थी कानों में चंचल छैल छबीली थी।।
दिल में एक चुभन-सी थी यह
दुनिया अलबेली थी।
मन में एक पहेली थी मैं सब के बीच अकेली थी।।
मिला, खोजती थी जिसको हे बचपन!
ठगा दिया तू ने।
अरे! जवानी के फन्दे में मुझको फँसा दिया तू ने।।
सब गलियाँ उसकी भी देखीं उसकी
खुशियाँ न्यारी है।
प्यारी, प्रीतम की रंग-रलियों की स्मृतियाँ भी प्यारी हैं।।
माना मैंने युवा-काल का जीवन
खूब निराला है।
आकांक्षा, पुरुषार्थ, ज्ञान का उदय मोहने वाला है।।
किन्तु यहाँ झंझट है भारी
युद्ध-क्षेत्र संसार बना।
चिन्ता के चक्कर में पड़ कर जीवन भी है भार बना।।
आ जा बचपन! एक बार फिर दे दे
अपनी निर्मल शान्ति।
व्याकुल व्यथा मिटाने वाली वह अपनी प्राकृत विश्रान्ति।।
वह भोली-सी मधुर सरलता वह
प्यारा जीवन निष्पाप।
क्या आकर फिर मिटा सकेगा तू मेरे मन का सन्ताप?
मैं बचपन को बुला रही थी बोल
उठी बिटिया मेरी।
नन्दन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी।।
'माँ ओ' कहकर बुला रही थी
मिट्टी खाकर आई थीं।
कुछ मुँह में कुछ लिए हाथ में मुझे खिलाने लाई थी।।
पुलक रहे थे अंग, दृगों में
कौतुहल था छलक रहा।
मुँह पर थी आहृलाद-लालिमा विजय-गर्व था झलक रहा।।
मैंने पूछा 'यह क्या लाई'? बोल
उठी वह 'माँ, काओ'।
हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से मैंने कहा- 'तुम्हीं खाओ'।।
पाया मैंने बचपन फिर से बचपन
बेटी बन आया।
उसकी मंजुल मूर्ति देखकर मुझ में नवजीवन आया।।
मैं भी उसके साथ खेलती खाती
हूँ, तुतलाती हूँ।
मिलकर उसके साथ स्वयं मैं भी बच्ची बन जाती हूँ।।
जिसे खोजती थी बरसों से अब जाकर
उसको पाया।
भाग गया था मुझे छोड़कर वह बचपन फिर से आया।।
१ सितंबर २००१ |