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अनुभूति में रघुवीर सहाय की रचनाएँ -

कविताओं में-
अधिनायक
दुनिया
पढ़िए गीता
नशे में दया
बसंत
बसंत आया
भला

लघु रचनाओं में
अगर कहीं मैं तोता होता
चांद की आदतें
बौर
पानी के संस्मरण
प्रतीक्षा

क्षणिकाओं में
वसंत
चढ़ती स्त्री
अँग्रेज़ी
दृश्य(१)
दृश्य(२)

संकलन में
धूप के पाँव- धूप
वर्षा मंगल - पहला पानी

  दुनिया

हिलती हुई मुँडेरें हैं और चटखे हुए हैं पुल
बररे हुए दरवाज़े हैं और धँसते हुए चबूतरे

दुनिया एक चुरमुरायी हुई-सी चीज़ हो गई है
दुनिया एक पपड़ियायी हुई-सी चीज़ हो गई है

लोग आज भी खुश होते हैं
पर उस वक्त एक बार तरस ज़रूर खाते हैं
लोग ज़्यादातर वक्त संगीत सुना करते हैं
पर साथ-साथ और कुछ ज़रूर करते रहते हैं
मर्द मुसाहबत किया करते हैं, बच्चे स्कूल का काम
औरतें बुना करती हैं - दुनिया की सब औरतें मिलकर
एक दूसरे के नमूनोंवाला एक अनंत स्वेटर
दुनिया एक चिपचिपायी हुई-सी चीज़ हो गई है।

लोग या तो कृपा करते हैं या खुशामद करते हैं
लोग या तो ईर्ष्या करते हैं या चुगली खाते हैं
लोग या तो शिष्टाचार करते हैं या खिसियाते हैं
लोग या तो पश्चाताप करते हैं या घिघियाते हैं
न कोई तारीफ़ करता है न कोई बुराई करता है
न कोई हँसता है न कोई रोता है
न कोई प्यार करता है न कोई नफ़रत
लोग या तो दया करते हैं या घमंड
दुनिया एक फँफुदियायी हुई-चीज़ हो गई है।

लोग कुछ नहीं करते जो करना चाहिए तो लोग करते क्या हैं
यही तो सवाल है कि लोग करते क्या हैं अगर कुछ करते हैं
लोग सिर्फ़ लोग हैं, तमाम लोग, मार तमाम लोग
लोग ही लोग हैं चारों तरफ़ लोग, लोग, लोग
मुँह बाये हुए लोग और आँख चुँधियाये हुए लोग

कुढ़ते हुए लोग और बिराते हुए लोग
खुजलाते हुए लोग और सहलाते हुए लोग
दुनिया एक बजबजायी हुई-सी चीज़ हो गई है।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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