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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

पहला पानी

बिजली चमकी
सुरपति के इस लघु इंगित पर
लो यहाँ जामुनी बादल नभ में ठहर गए
आशीष दे रहे हाथों से।
धीरे-धीरे पूरब से आती हुई हवा
चारों दिशाओं में गई फैल
ढँक गए शीत से चौड़े-चौड़े खेत, हार
धरती परती घर गलियारे सब जुड़ गए
धीरे-धीरे संध्या की-सी बदली छाई
दुपहर जल से गरुई होकर कुछ झुक आई
आलोक गल गया अंबर में
लो सहसा झर-झरकर पहला झोंका आया
हम बढ़ें घरों की ओर तनिक
जल्दी-जल्दी दौड़े-दौड़े।
दो गोरे-गोरे बलगर बैलों की गोंई
हो गई ठुमककर खड़ी पकरिया के नीचे
उड़ गई चहककर नीबी की सबसे ऊँची
फुनगी पर बैठी गौरैया
फैली चुनरिया अटरिया चढ़ लाई उतार
जल्दी-जल्दी घाघर समेट घर की युवती।
खुलकर बरसा पहला पानी
इन धुले-धुले बिरवों के नीचे से होकर
बह चली गाँव की गैल-गैल
कच्ची मिट्टी की सुघर गेहुँई दीवारें

-रघुवीर सहाय
19 अगस्त 2001

  

मेघ मल्हार

तान-तान के तड़-तड़ की
गावत मेघ मल्हार
छन-छन नाचें आँगन में
सावन की बौछार

हरियाली की हरी चुनरिया
धरती करे शृंगार
मस्त श्यामल आसमान का
उमड़त घुमड़त प्यार

तन में बिजली-सी दौड़ाती
ठंडी पुरवा ब्यार
वन-वन डोले मन का मयूरा
पिहु-पिहु करे पुकार

छके छकाए ताल तलैया
दादुर चढ़े खुमार
बाग बगीचे कोयल कूके
पपीहा बैठे डार

गाँव-गाँव बगिया-बगिया में
झूले अमुआ डार
सखा सखी झूले पर करते
हँसी ठिठोल अपार

रचा हथेली बैठ सहेली
पीहर में दिन चार
पनघट बगिया गैल अटरिया
बहती बतरस धार

-पुष्पेंद्र शरण पुष्प

24 अगस्त 2005

 

 

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