अनुभूति में
कन्हैयालाल नंदन
की रचनाएँ-
गीतों में-
अंग अंग चंदन वन
क्यों, आखिर क्यों?
जीवन-क्रमः तीन चित्र
तस्वीर और दर्पन
बोगनबेलिया
शापित कमलों का आत्म-मंथन
वर्जना का गीत
अंजुमन में-
अपनी महफ़िल
जो कुछ तेरे नाम
तेरी याद
हर सुबह
छंदमुक्त में-
ज़िन्दगी़ चार कविताएँ
संकलन में-
वसंती हवा-वसंत
घर आ गया
धूप के पाँव -
सूरज की पेशी
वर्षा मंगल -
बादल गीत |
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शापित कमलों का
आत्म-मंथन गंध की
पंखुरियों पर
बूँदों का पहरा
अंतर का तरलायित दर्द
बिखर
ठहरा।
झिलमिल-सी ज़िंदगी है ये ठहरा जल
सत्य के झरोखों से
झाँक रहा छल।
इंद्रधनुष-सा भविष्य
दे दिया जनम ने।
आलस के बीच-मंत्र
सिद्ध किए
हमने।
शेखियाँ बघारते
गई उमर निकल,
ललक रहे बोये बिन
काटने
फसल।
चटख-चटख रंगों में
ज़िंदगी नई।
मुट्ठी भर रोशनी
सही नहीं गई,
लंगड़ाती ताबों का अगुआ
हर दल।
आस के धुँधलकों की
धारा अविरल।
मुट्ठियाँ हवाओं में
तान-तान
सोचा
हाय कुछ न आया
तो
खालीपन नोचा।
सिसिफस का शाप
जिया करते
हर पल!
इसी तरह मुरझ गए
शतदली कमल!
३१ अगस्त २००९ |