सावन की रिमझिम
सावन की रिमझिम आभा से
मन हर्षित भाव-विभोर हुआ
पीहू-पीहू पपीहा बोल उठा
कुह-कुह कोयल का शोर हुआ
हरियाला परिधान धारकर
वसुंधरा ने शृंगार किया
शीतल मंद पवन ने आकर
लताओं से प्यार किया
चम-चम, चम-चम चपला चमके
छाती चाक करे नभ की
छम-छम, छम-छम गिरती बूँदें
मदिरा बनी धारा लब की
इस मंज़र की एक झलक को
अँखियाँ तरस रही कब की
ये सावन तो ऐसा बरसे
प्यास बुझाए जो सबकी
मन मोर झूम कर नाच उठा
काश सदा ये बात रहे
रुक जाए समय की गति
यों ही, खुशियों की ये बरसात रहे।
यशपाल सिंह 'रवि'
16 सितंबर 2003
वर्षा की वे पहली बूँदें
ग्रीष्म ऋतु कर रही पलायन
वर्षा का हो रहा आगमन
सब चाहते आंदोलित होना
छत पर अब भी बिछे बिछौना
सबको इंतज़ार कि छू लें
वर्षा की वो पहली बूँदें
प्रीतम से है प्रेयसी रूठी
खाई थीं क्यों कसमें झूठी
मौका है प्रिया मनाने का
क्रोध के बादल छँट जाने का
प्रीत के द्वार यकीनन खोलें
वर्षा की वो पहली बूँदें
मोर-पपीहा बाट जोहते
खेत सदा इंतज़ार में रहते
सब के तन मन को हर्षाती
जड़ चेतन आनंद दे जाती
मन कहता बस आकर बोलें
वर्षा की वो पहली बूँदें
- घनश्याम दास आहूजा
10 सितंबर 2001
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