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मौज
कितना निठुर यह उपहास
कितना निठुर यह उपहास !
जो अजाने ही गया, वह था मधुर मधुमास !
कितना निठुर यह उपहास !!
अश्रु-'कण' कहकर जिसे
मैंने बहाया हाय !
सूक्ष्म रूप धरे वही था -
हृदयहारी हास !
कितना निठुर यह उपहास !
स्वप्न-सुख की आस में
सोया रहा दिन-रात,
वह गया नित लौट -
शत-शत बार आकर पास !
कितना निठुर यह उपहास !
११ अप्रैल २०११
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