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माझी उसको मझधार न कह
रुक गयी नाव
जिस ठौर स्वयं, माझी,
उसको मझधार न कह !
कायर जो बैठे आह भरे
तूफानों की परवाह करे
हाँ, तट तक
जो पहुँचा न सका,
चाहे तू उसको ज्वार न कह !
कोई तम को कह भ्रम, सपना
ढूँढे, आलोक-लोक अपना,
तव सिन्धु पार
जाने वाले को,
निष्ठुर, तू बेकार न कह !
११ अप्रैल २०११
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