ग़म न हो पास
ग़म न हो पास इसी से उदास मेरा मन।
साँस चलती है, चिहुँक चेतता नहीं है तन।
नींद ऐसी न किसी और को आई होगी,
जाग कर ढूँढ़ती धरती कहाँ है मेरा गगन।
मौसमी गुल हो निछावर, बहार तुम पर ही,
क़ाबिले दीद ख़िज़ाँ में खिला है मेरा चमन।
भूलकर कूल ग़र्क़ कश्तियाँ हुईं कितनी,
लौट मझधार से आया चिरायु ख़ुद मरण।
बुलबुलों ने दिया दुहरा कलाम ग़ंचों का,
गंध बर मौन रहा आह! एक मेरा सुमन।
२४ अक्तूबर २००७
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