अनुभूति में
रामधारी सिंह दिनकर की
रचनाएँ -
आग की भीख
कलम आज उनकी जय बोल
कवि
गीत
जवानी का झंडा
भगवान के डाकिये
वीर
समरशेष है
सावन में
हिमालय
हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों
संकलन में -
वर्षामंगल -
पावस गीत
गाँव में अलाव -
मिथिला
में शरद
प्रेमगीत -
नामांकन
मेरा भारत -
ध्वजा वंदना
जग का मेला -
चाँद का कुर्ता
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वीर
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नही विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं
मुँह से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
खम ठोक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब ज़ोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुण बड़े एक से एक प्रखर,
है छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नही जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है। |