अनुभूति में
रामधारी सिंह दिनकर की
रचनाएँ -
आग की भीख
कलम आज उनकी जय बोल
कवि
गीत
जवानी का झंडा
भगवान के डाकिये
वीर
समरशेष है
सावन में
हिमालय
हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों
संकलन में -
वर्षामंगल -
पावस गीत
गाँव में अलाव -
मिथिला
में शरद
प्रेमगीत -
नामांकन
मेरा भारत -
ध्वजा वंदना
जग का मेला -
चाँद का कुर्ता
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सावन में
जेठ नहीं, यह जलन हृदय की,
उठकर ज़रा देख तो ले,
जगती में सावन आया है,
मायाविनि! सपने धो ले।
जलना तो था बदा भाग्य में
कविते! बारह मास तुझे,
आज विश्व की हरियाली पी
कुछ तो प्रिये, हरी हो ले।
नन्दन आन बसा मरू में,
घन के आँसू वरदान हुए;
अब तो रोना पाप नहीं,
पावस में सखि! जी भर रो ले।
अपनी बात कहूँ क्या? मेरी
भाग्य-लीक प्रतिकूल हुई;
हरियाली को देख आज फिर
हरे हुए दिल के फोले। |