अनुभूति में
रामधारी सिंह दिनकर की
रचनाएँ -
आग की भीख
कलम आज उनकी जय बोल
कवि
गीत
जवानी का झंडा
भगवान के डाकिये
वीर
समरशेष है
सावन में
हिमालय
हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों
संकलन में -
वर्षामंगल -
पावस गीत
गाँव में अलाव -
मिथिला
में शरद
प्रेमगीत -
नामांकन
मेरा भारत -
ध्वजा वंदना
जग का मेला -
चाँद का कुर्ता
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जवानी का झंडा
घटा फाड़ कर जगमगाता हुआ
आ गया देख, ज्वाला का बाण,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!
सहम करके चुप हो गए थे समुन्दर
अभी सुनके तेरी दहाड़,
ज़मीं हिल रही थी, जहाँ हिल रहा था,
अभी हिल रहे थे पहाड़।
अभी क्या हुआ, किसके जादू ने आ करके
शेरों की सी दी जुबान?
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!
खड़ा हो कि धौंसे बजा कर जवानी
सुनाने लगी फिर धमार,
खड़ा हो कि अपने अहंकारियों को
हिमालय रहा है पुकार।
खड़ा हो कि फिर फूँक विष की लगा
धूर्जंटी ने बजाया विषाण,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!
गरज कर बता सबको, मारे किसी के
मरेगा नहीं हिन्द-देश,
लहू की नदी तैर कर आ रहा है
कहीं से कहीं हिन्द-देश।
लड़ाई के मैदान में चल रहे ले के
हम उसका उड़ता निशान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!
अहा! जगमगाने लगी रात की
माँग में रौशनी की लकीर,
अहा! फूल हँसने लगे, सामने
देख, उड़ने लगा वह अबीर।
अहा! यह उषा होके उड़ता चला
आ रहा देवता का विमान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान! |