अनुभूति में
भारत भूषण की रचनाएँ-
नये गीतों में-
किसके हुए
फिर फिर बदल दिये कैलेंडर
जैसे कभी पिता चलते थे
लौट चले हैं
गीतों में-
अब खोजनी है
आज पहली बात
चक्की पर गेहूँ
जिस दिन बिछड़ गया
जिस पल तेरी याद सताए
जैसे पूजा में आँख भरे
तू मन अनमना न कर
बनफूल
मनवंशी
मेरी नींद चुराने वाले
मेरे मन-मिरगा
ये असंगति जिंदगी के द्वार
ये उर सागर के सीप
राम की जल समाधि
लो एक बजा
सौ सौ जनम प्रतीक्षा
हर ओर कलियुग
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फिर फिर बदल
दिये कैलेंडर
फिर फिर
बदल दिये कैलेंडर
तिथियों के संग संग प्राणों में
लगा रेंगने
अजगर सा डर
सिमट रही साँसों की गिनती
सुइयों का क्रम जीत रहा है!
पढ़कर
कामायनी बहुत दिन
मन वैराग्य शतक तक आया
उतने पंख थके जितनी भी
दूर दूर नभ
में उड़ आया
अब ये जाने राम कि कैसा
अच्छा बुरा अतीत रहा है!
संस्मरण
हो गई जिन्दगी
कथा कहानी सी घटनाएँ
कुछ मनबीती कहनी हो तो
अब किसको
आवाज लगाएँ
कहने सुनने सहने दहने
को केवल बस गीत रहा है!
१६ दिसंबर २०१३ |