अनुभूति में
भारत भूषण की रचनाएँ-
गीतों में-
अब खोजनी है
आज पहली बात
चक्की पर गेहूँ
जिस दिन बिछड़ गया
जिस पल तेरी याद सताए
जैसे पूजा में आँख भरे
तू मन अनमना न कर
बनफूल
मनवंशी
मेरी नींद चुराने वाले
मेरे मन-मिरगा
ये असंगति जिंदगी के द्वार
ये उर सागर के सीप
राम की जल समाधि
लो एक बजा
सौ सौ जनम प्रतीक्षा
हर ओर कलियुग
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ये
असंगति जिंदगी के द्वार
ये असंगति जिन्दगी के द्वार
सौ-सौ बार रोई
बाँह में है और कोई चाह में है और कोई
साँप के आलिंगनों में
मौन चन्दन तन पड़े हैं
सेज के सपनो भरे कुछ
फूल मुर्दों पर चढ़े हैं
ये विषमता भावना ने सिसकियाँ भरते समोई
देह में है और कोई, नेह में है और कोई
स्वप्न के शव पर खड़े हो
माँग भरती हैं प्रथाएँ
कंगनों से तोड़ हीरा
खा रहीं कितनी व्यथाएँ
ये कथाएँ उग रही हैं नागफन जैसी अबोई
सृष्टि में है और कोई, दृष्टि में है और कोई
जो समर्पण ही नहीं हैं
वे समर्पण भी हुए हैं
देह सब जूठी पड़ी है
प्राण फिर भी अनछुए हैं
ये विकलता हर अधर ने कंठ के नीचे सँजोई
हास में है और कोई, प्यास में है और कोई
१९ दिसंबर २०११ |