अनुभूति में
भारत भूषण की रचनाएँ-
नये गीतों में-
किसके हुए
फिर फिर बदल दिये कैलेंडर
जैसे कभी पिता चलते थे
लौट चले हैं
गीतों में-
अब खोजनी है
आज पहली बात
चक्की पर गेहूँ
जिस दिन बिछड़ गया
जिस पल तेरी याद सताए
जैसे पूजा में आँख भरे
तू मन अनमना न कर
बनफूल
मनवंशी
मेरी नींद चुराने वाले
मेरे मन-मिरगा
ये असंगति जिंदगी के द्वार
ये उर सागर के सीप
राम की जल समाधि
लो एक बजा
सौ सौ जनम प्रतीक्षा
हर ओर कलियुग
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किसके हुए
सारी उमर करके धुआँ
यह तो कहो किसके हुए
परिवार के या प्यार के
या गीत के या देश के
यह तो कहो, किसके हुए!
कंधे बदलती थक गईं
सड़कें तुम्हें ढोती हुईं
रितुएँ सभी तुमको लिए
घर-घर फिरीं-रोती हुईं
फिर भी न टंक पाया कहीं
टूटा हुआ कोई बटन
अस्तित्व सब चिथड़ा हुआ
गिरने लगे पग-पग जुए!
यह तो कहो, किसके हुए!
संध्या तुम्हें घर छोड़कर
दीवा जला मंदिर गई
फिर एक टूटी रोशनी
कुछ साँकलों में घिर गई
स्याही तुम्हें लिखती रही
पढ़ती रहीं उखड़ी छतें
आवाज से परिचित हुए
केवल गली के पहरुए!
यह तो कहो किसके हुए!
हर दिन गया डरता किसी
तड़की हुई दीवार से
हर वर्ष के माथे लिखा
गिरना किसी मीनार से
निश्चय सभी अंकुरान में
पीले पड़े, मुरझा गए
मन में बने साँपों-भरे
जालों-पुरे अंधें कुए
यह तो कहो, किसके हुए!
१६ दिसंबर २०१३ |