अनुभूति में
डॉ. योगेन्द्रनाथ
शर्मा अरुण की रचनाएँ-
गीतों में-
चलो प्रीत के दीप जलाएँ
जीवन तो फूल सरीखा है
नाता ये कैसा है
मैं ऋणी हूँ प्रिय तुम्हारा
हर दिल में स्थान मिलेगा
दोहों में-
जीवन के अनुभव
संकलन में-
दीप धरो-
चलो प्रीत के दीप जलाएँ |
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मैं ऋणी हूँ प्रिय तुम्हारा
प्यार देकर कर दिया तुमने अमर
मैं ऋणी हूँ प्रिय तुम्हारा!
प्रीत है वरदान पावन सृष्टि में
जो दिया तुमने बिना माँगे मुझे
कर दिया उपकृत मुझे प्रियतम मेरे
दे दिया अमृत बिना माँगे मुझे
प्रीत का उपहार अनुपम मिल गया है
मैं ऋणी हूँ प्रिय तुम्हारा
यह जगत तो स्वार्थ केवल जानता
तुम बने निस्स्वार्थ मन के मीत मेरे
छेड़ कर संगीत स्वर्गिक आज प्रियतम
कर दिए जीवित ह्रदय के गीत मेरे
सृजन का संसार तुमने दे दिया है
मैं ऋणी हूँ प्रिय तुम्हारा
प्रीत पावन है तुम्हारी यह अनूठी
ऐसी लगती जैसे गंगा-धार है
देह-मंदिर में जले हैं दीप अनगिन
ऐसा लगा जैसे मिलन-त्यौहार है
आत्मा को आज जैसे मिल गया परमात्मा
मैं ऋणी हूँ प्रिय तुम्हारा
१३ जुलाई २०१५ |