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दिल की पतंग
क्यों आज घना बदली का रंग
क्यों ढूँढ रहा मन उनका संग
लेकर उमंग, लेकर तरंग
उड़ने चली, दिल की पतंग
आकाश, समुंदर से गहरा
है प्यार मेरा, सेहरा सेहरा
कैसे शब्दों में लिख दूँ मैं
अपने जज़्बातों का चेहरा
तेरे तन की खुशबू से दंग
निखरा मेरा हर अंग-अंग
कहना जो चाहूँ कह दूँ क्या?
ख्वाबों से निंदिया लह दूँ क्या?
सोलह शृंगार मेरे तन का
उनकी बाँहों में ढह दूँ क्या?
दिल की चाहत से पूछ रहा
संकोच मेरा, होकर दबंग
आज़ाद परिंदे उड़ने दो
धड़कन से धड़कन जुड़ने दो
साँसों को साँस सुनाई दे
इतनी ख़ामोशी बढ़ने दो
है रात भरी अरमानों से
कट जाए न बेबस, अपंग
लेकर उमंग, लेकर तरंग
उड़ने चली, दिल की पतंग
१ जुलाई २०२२ |