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अनुभूति में विजय कुमार सिंह की रचनाएँ—

गीतों में-
पर्ण पतझड़ पीत
फिर बोलो बोलेगा कौन
मन माँझी बन कर गाता है

मेरा देश
वक्त की किताब में

  मन माँझी बन कर गाता है

मन माँझी
बन कर गाता है
सुख दुःख के सागर में अविरल
जीवन नौका तैराता है

मेरे जीवन
की यह नौका
बिन बाधा के बढ़ती जाए
लहरों के
शांत थपेड़े हों,
मंथर गति से चलती जाए

मेरे अनुकूल समीरण हो,
तन्मय सुर में दोहराता है

चंदा को
गाता गीतों में,
सूरज की किरणों को गाए
नभ में
छाए काले बादल,
वारिद की बूँदों को गाए

ले पुनर्मिलन के गीत सजे
कभी विरहा राग सजाता है

है मंजिल
मेरी दूर अभी
मेरा अदृश्य किनारा है
कुछ और
नहीं है पास मेरे
बस आशा एक सहारा है

मैं अपने प्रिय से दूर अभी
उसका सन्देश बुलाता है

७ मई २०१२

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