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फिर बोलो बोलेगा कौन
दस्तक देता
दरवाजों पर, अनजाना आकर कोई
घिर जाते घनघोर अँधेरे, सुधबुध जब खोता कोई
पल-पल बढती आशंका में कब कैसे सो लेगा कौन
मैं भी चुप हूँ तुम भी चुप हो
फिर बोलो बोलेगा कौन
युग बदले
पीड़ित मानवता, सिसकारी ले अब भी रोती
अपने ही आँगन में अब तक, चेतनता मुँह ढाँके सोती
मनोहारी मृदु स्वर लहरी बन, इसके दृग खोलेगा कौन
मैं भी चुप हूँ तुम भी चुप हो
फिर बोलो बोलेगा कौन
भग्न हृदय
जीवन्तता पाकर, हर्षित पुलकित मुस्काएँगे
विश्वास भरे बासंतिक द्रुम से, पल्लव पुष्पित लहरायेंगे
बेबस झरता हर एक आँसू मोती सा तोलेगा कौन
मैं भी चुप हूँ तुम भी चुप हो
फिर बोलो बोलेगा कौन
खुले क्षितिज पर
अंकित होनी, महासमर की गौरव गाथा
सागर की लहरों से होनी, अपने जीवन की परिभाषा
तिमिराच्छादित मेघों में अब, वज्रदल बन डोलेगा कौन
मैं भी चुप हूँ तुम भी चुप हो
फिर बोलो बोलेगा कौन
७ मई २०१२ |