अनुभूति में सुभाष काक की कविताएँ-
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नगर
नगर एक कारागार है। जो धरती पर राज करे पहले एक माली बने।
मुझे अब याद नहीं कि मैंने यह पौधे बोए।
पुस्तक जेब में एक उद्यान है। प्रकृति में प्रत्येक वस्तु एक जाल में बँधी है।
फूल भी अतिथि से मिलने को आतुर हैं।
16 जनवरी 2007
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