अनुभूति में
सरोज उपरेती की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
गंगा और हमारी आस्था
बेटे का इन्तजार
मन मेरी नहीं सुनता
विदाई
वृद्धावस्था
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वृद्धावस्था
कंकाल सा ये बदन ढल रहा
रेत के कण सा फिसलता जा रहा
साथ साथ दुनिया भर के गम
प्रति दिन समेटे जा रहा
असमर्थ सा ये जीवन
पंगु हो रहा प्रति पल प्रति क्षण
लाठी का संबल ले चलता
असहाय, भार स्वरूप बन
हृदय वेदना कह रही
थी कभी ये, बगिया हरी भरी
लाचार सा ये जीवन
जो कभी संबल रहा
आज संबल ढूँढ़ता सा फिर रहा
मध्यम मध्यम रोशनी में
टिमटिमाता, एक दीपक जल रहा
बुझ उठेगा एक हवा के झोंके से
तेल, इसमें बाकी ना रहा
सरोज उप्रेती
२४ जून २०१३ |