अनुभूति में
सरोज उपरेती की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
गंगा और हमारी आस्था
बेटे का इन्तजार
मन मेरी नहीं सुनता
विदाई
वृद्धावस्था
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विदाई
मुझे विदाई दे दो माँ दुनिया को मैं छोड़ में चली
ख्वाहिश मेरी यही थी माँ, मैं नाम ऊँचा कर जाती
कष्ट बहुत उठाए तुमने तुम्हें सहारा दे पाती
आधी अधूरी इच्छा ले इस दुनिया से कर कूच चली
वो ही लोरी सुनादो माँ जो बचपन में गाया करतीं
राज कुँवर के मीठे सपने, तुम मुझको दिखाया करतीं
मीठी लोरी सुन कर मैं भी मीठे स्वप्न सजाया करती
आज अधूरे स्वप्नों की डोली में बैठ, मैं चली
छोटे भैया से कहना याद आये अगर बहिना
राखी के दिन सूनी हथेली देख के तुम मत रोना
मेरी यादें साथ में रख राखी का कर्ज अदा करना
बिछड़ी बहिना अब न मिलेगी सोच मत दुखी रहना
बड़े नाज से तुमने बाबा पाल पोस कर बड़ा किया
बेटी के अधिकारों से कभी मुझे वंचित न किया
साहसी बना मुझको समाज में इक नाम दिया
लड़ न सकी बेटी तुम्हारी बिना बात के हार चली
इच्छा मेरी जाते जाते हर बेटी को इन्साफ मिले
कोई कन्या अपने को असमर्थ ना महसूस करे
फूल बनने से पाहिले मुरझाये ना कोई कली
इसी उम्मीद को में अपने सीने में दबाए आज चली
२४ जून २०१३ |