अनुभूति में
सरोज उपरेती की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
गंगा और हमारी आस्था
बेटे का इन्तजार
मन मेरी नहीं सुनता
विदाई
वृद्धावस्था
|
|
बेटे का
इन्तजार
इन्तजार करती
अन्दर बाहर करती
डाकिये के आने से पहेले ही बाहर खड़ी होती
मेरी चिट्ठी का बेसब्री से इन्तजार करती
डाकिये को ओझल होते देख
निराश होती मेरी माँ
कोई बुरा सपना देख
मन ही मन परेशान मेरे बुरे की आशंका से चिंतित
ना जाने कितने देवी देवताओं से मन्नत माँगती
मेरी सलामती के लिए
मेरी कुशल चाहती, दुवा माँगती मेरी माँ
मेरी चिट्ठी मिलने पर फूली न समाती
बूढी थकी ऑंखें, जो चश्मे से भी धुँधला देखतीं
हर पल अश्क बहाती जाती
उन्हें पोंछती जाती चिट्टी पढ़ रोती जाती
दस बार पढ़ कर भी नहीं थकती
मेरी माँ
मेरी चिट्ठियों का पुलिंदा बनाना
एक चिट्ठी को दस बार पढ़ना
फिर उसी हालत में उन्हें सहेज कर रखना
मेरी अगली चिट्ठी आने तक
बार बार निकाल कर पढ़ती
चिट्ठी को चूमती
उसमें मेरी शक्ल देखती
मेरी माँ
एक उम्मीद सी दिल में जगा लेती
इस बार लल्ला आएगा
ना जाने कैसे कैसे ख्वाब मन मन में सजाती
मन ही मन मेरी पसंदीदा चीजों की सूची
बन जाती
आम का आचार बेसन के लड्डू
डब्बों में भरती रहती
पडोस में कौन सी मिठाई देनी है
सोचती रहती मेरी माँ
जानता हूँ मैं इतनी जल्दी जा नहीं पाऊँगा
लेकिन लिख देता इस बार जल्दी आऊँगा
मेरी हर बात को सच मानती
इन्तजार करती रहती
अपने को दिलासा देती
उम्मीद बाँधे रखती मेरी माँ
२४ जून २०१३ |