अनुभूति में
सरोज उपरेती की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
गंगा और हमारी आस्था
बेटे का इन्तजार
मन मेरी नहीं सुनता
विदाई
वृद्धावस्था
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मन मेरी
नहीं सुनता
मन पगला मेरी नहीं सुनता
लाख समझाऊँ बात न माने
दुनिया के जंजाल में फँस
इधर उधर भटकता फिरता
तेज हवा की गति से चलता
भला बुरा कुछ भी न समझता
बीती बातें भूल न सकता
अतीत से बाहर नहीं निकलता
भविष्य को ले परेशान होता
कल का इसको पता न होता
जो सपने साकार हुए नहीं
उन सपनों में डूबा रहता
रंगीन दुनिया में खो जाता
इच्छाओं को गले लगाता
खुद के ऊपर जाल बिछा
उसी जाल में फँसता जाता
मन पगला मेरी नहीं सुनता
२४ जून २०१३ |