जड़ें
पेड़ जड़ नहीं होते
जड़ो के साथ चलते हैं
जड़ें रुकी नहीं कभी कहीं
जाती हैं वहाँ जहाँ है जल
दूर-दूर तक जाती हैं
होकर रेगिस्तानी रेत से
टेढ़ी मेढ़ी पथरीली राहों से
दीवारों की दरारों से होकर
नीवें हिलातीं
सीमायें लाँघतीं
स्नेह की खोज में।
हमारी जड़ें वहाँ हैं जहाँ
प्यार है प्रीति है वात्सल्य है
जाता है मन वहीं फिर फिर
जहाँ हैं यादें
स्नेह के अटूट बन्धन हैं।
मैं जाता हूँ बार-बार
बहुत दूर
वहीं
जहाँ अपनों का अनुरागी
माँ का पापा का
अनुजों का
बालसखाओं का
पड़ौसी चाचा चाचियों का
सहवास मिले।
जहाँ औपचारिक मुखौटे नहीं
मुस्कारहटें नकली नहीं
बस हँसी है
आँसूँ हैं नैसर्गिक
गुस्सा है प्राकृतिक
क्षणिक।
हाँ हैं लोग भावुक
पल में ये पल मे वो
मगर हैं वही
असली
रिश्तों में बन्धे।
जीवन पनपता है वहीं
जहाँ हैं स्नेह आँसुओं का
जहाँ पेड़ का हैं जीवन स्रोत
वहीं जाती हैं जड़ें
क्या पेड़ जड़ नहीं होते?
११ अगस्त २००८ |