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अनुभूति में प्रेम माथुर की रचनाएँ

कविताओं में-
2 अक्तूबर की याद में
खाली झोली
गुलमोहर
जड़ें
धूप खिली है
बापू की याद

क्षणिकाओं में-
आठ क्षणिकाएँ

संकलन में-
नया साल- जश्न नए साल का

  धूप खिली है

धूप खिली है महीनों के बाद
फूल खिले हैं महीनों के बाद
तुम भी ज़रा मुसकुराओ तो
हम तुम मिले हैं महीनों के बाद
धूप खिली है महीनों के बाद
फूल खिले हैं महीनों के बाद

आज दिल ने कहा है कि उट्ठो
खुले आसमाँ के नीचे चलो
खामोश रह कर सहे हैं दर्दोगम
आज आपस में कुछ बाँट लेंगे हम
न तुम अपनी कहो न मेरी सुनो
लब अब मिले हैं महीनों के बाद
धूप खिली है महीनों के बाद
फूल खिले हैं महीनों के बाद।

महीनों हुआ है ऐसा ही दोस्त
निकले गली से दुआ न सलाम
आओ मिल लें गले आज हम
पिघली है बर्फ़ महीनों के बाद
धूप खिली है महीनों के बाद
फूल खिले हैं महीनों के बाद।

११ अगस्त २००८

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