अनुभूति में
प्रेम माथुर की रचनाएँ
कविताओं में-
2 अक्तूबर की याद में
खाली झोली
गुलमोहर
जड़ें
धूप खिली है
बापू की याद
क्षणिकाओं में-
आठ क्षणिकाएँ
संकलन में-
नया साल-
जश्न
नए साल का
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२
अक्तूबर की याद में
धर्म जनता के लिए अफीम है
किसी ने कहा था कभी।
आज है धर्म एक्स्टेसी
मारने मरने का उफान है
धर्मांधता है जुनून है
अल्लाहो अकबर
जो बोले से निहाल
हरहर महादेव
हैलेलूया।
पढ़ता है यहूदी अपना तोरा
ईसाई अपनी बाइबल
मुसलमान पढ़ता है कुरआन
टिकाए कंधों पर रायफल
सहारा लिए तोप का
मासूमों को मारने से पहले
करता है इबादत
अलग-अलग ज़बानों में
खुदा गौड भगवान के नाम पर
कभी किसी पैगंबर के पयाम पर।
हुए होंगे गांधी किंग मंडेला पिछली सदी में
हुए होंगे कभी बुद्ध महावीर ईसा
अब तो करते है कत्ल इंसानों का
मज़हबों के नाम कुछ काफ़िर हैवान
ले ले कर जुदा-जुदा खुदाओं के नाम।
ईश्वर अल्ला किसके नाम?
1 अक्तूबर 2006 |