अनुभूति में
प्रवीण अग्रवाल
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बीता हुआ कल और आने वाला कल
मृत्यु के आगे
विदेश में भारतीय किराएदार |
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विदेश में भारतीय किराएदार
यहाँ के लोग अजीब हैं कुछ
लगता है, ज़रूरत से ज़्यादा ऐतबार करते हैं
पता नहीं, अजनबियों पर या अपनी सरकार पर
इतने दिनों से मैं किसी के घर किरायेदार हूँ
पर हम दोनो अभी भी एक दूसरे से अजनबी हैं
रास्ते मैं टकराएँगे तो देखेंगे भी नहीं एक दूसरे को
सोचेंगे भी नहीं कि,
बगल से गुजरने वाले अजनबी से
शायद मुझे कुछ सरोकार है
सुना था कि यकीन ख़ौफ़ को मरता है
धोखे का ख़ौफ़, या फिर लुटने का ख़ौफ़,
वग़ैरह, वग़ैरह
पर यहाँ तो ये जज़्बातों को ख़त्म कर रहा है
ये ख़ौफ़ तो अजनबियों को मिलने की वजह देता है
मिल कर जानने का, समझने का मौका देता है
उस अजनबी की दुनिया से वाक़िफ़ करता है
इसके आगे चल कर ही तो रिश्ते बनते हैं,
यादें बनती हैं
पर यहाँ, ऐतबार ने मिलने की ज़रूरत को ख़त्म कर दिया है
तो मौका क्या मिले और यादें कैसे बनें
मैने यहाँ आ कर जाना,
के मेरे देश के लोग अजनबियों का
ऐतबार क्यूँ नहीं करते
३० अप्रैल २०१२ |