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अनुभूति में प्रवीण अग्रवाल की रचनाएँ

दोहों में-
पाँच दोहे

छंदमुक्त में-
बीता हुआ कल और आने वाला कल
मृत्यु के आगे

विदेश में भारतीय किराएदार

  बीता हुआ कल और आने वाला कल

कल की बातें बीत गयी कल
कल के आगे अब है एक कल
कल न कल पे ज़ाया करना
कल ले लिए बस आगे बढ़ना

कल है यादों की परछाई
कल है सूरज की अँगड़ाई
कल के लिए आँसू क्यूँ बहाने
कल में छुपे कितने ही ख़ज़ाने

कल जो हुआ, उस पर क्या बस है
कल में जीवन का सुख रस है
कल को ना संभव फिर लाना
कल है तेरे हाथ सजाना

कल है कहानी बलिदानो की
कल है गाथा निर्माणों की
कल है एक थका मुसाफिर
कल छू लेना चाहे हिमगीर

पर कल है गुरुओं की वाणी
और कल है चंचल अग्यानि
कल है जैसे शांत सरोवर
पड़े जो पत्थर, लेहर बनाए
कल है कल-कल बहता झरना
हो उन्मत बस बढ़ता जाए

समय पर स्वयं को सेतु बनाओ
कल और कल को आज मिलाओ
बैठ के कल में, कल को विचारो
कल से सीख के, कल को सवारो

३० अप्रैल २०१२

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