अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रभात कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
कल के लिये
प्यार
विवाह
शब्द

 

विवाह



रूखी–सी जिन्दगी,
और सपनों की सूखी तलैया
सुखी होता हूं यह सोच–सोच कर . . .
कितने खुश होंगे हम दोनो,
अरमानों के पहाड़ पर चढ़ते हुए
सुनकर–सुनाकर, सजकर–सजाकर
जीवन मानो 'फेयरी क्वीन' हो!



दो बेचैन दिल
सोचकर अपनी दशा
तय करते हैं दिशा
शायद,
जिन्दगी की गाड़ी सरपट दौड़ निकले,
शादी के इंजन से, सपनों की पटरी पर!



नित्य नई जरूरतें,
और ढेर सारे उलाहने,
आदतों की टकराहट के बीच
नौकरी के लिये हज़ार बहाने।
रोते हुए बच्चे और
सिसकती कलाइयों को देखा
तो लगा, जैसे किसी ने
फेयरी क्वीन से धक्का देकर
चलता कर दिया हो।



एक लंबा सा सफर,
प्राणनाथ से अनाथ बनने तक का।
हीर–रांझा वाला दिवा–स्वप्न और
विवाह की मधु–रात्रि कहाँ? अब तो–
वाह! वाह! ही होता है।
खयालों में अब, फूलों की घाटी नहीं
अरस्तू ही आते हैं।
कल भी आए, बोले–
दुआ माँगो अपनी अर्धांगिनी से
पति नहीं, तो पतित ही समझकर
ज्यादा सपने न सजाए,
कम से कम आगे अब
शादी का जीवन सादा ही कट जाए!

२४ अप्रैल २००४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter