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विवाह
१
रूखी–सी जिन्दगी,
और सपनों की सूखी तलैया
सुखी होता हूं यह सोच–सोच कर . . .
कितने खुश होंगे हम दोनो,
अरमानों के पहाड़ पर चढ़ते हुए
सुनकर–सुनाकर, सजकर–सजाकर
जीवन मानो 'फेयरी क्वीन' हो!
२
दो बेचैन दिल
सोचकर अपनी दशा
तय करते हैं दिशा
शायद,
जिन्दगी की गाड़ी सरपट दौड़ निकले,
शादी के इंजन से, सपनों की पटरी पर!
३
नित्य नई जरूरतें,
और ढेर सारे उलाहने,
आदतों की टकराहट के बीच
नौकरी के लिये हज़ार बहाने।
रोते हुए बच्चे और
सिसकती कलाइयों को देखा
तो लगा, जैसे किसी ने
फेयरी क्वीन से धक्का देकर
चलता कर दिया हो।
४
एक लंबा सा सफर,
प्राणनाथ से अनाथ बनने तक का।
हीर–रांझा वाला दिवा–स्वप्न और
विवाह की मधु–रात्रि कहाँ? अब तो–
वाह! वाह! ही होता है।
खयालों में अब, फूलों की घाटी नहीं
अरस्तू ही आते हैं।
कल भी आए, बोले–
दुआ माँगो अपनी अर्धांगिनी से
पति नहीं, तो पतित ही समझकर
ज्यादा सपने न सजाए,
कम से कम आगे अब
शादी का जीवन सादा ही कट जाए!
२४ अप्रैल २००४ |