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प्यार
प्यार,
आज तक अपनी परिभाषाएँ ढूँढता रहा है।
इस संज्ञा ने हमेशा,
सर्वनाम को तलाशा है।
प्रेमियों की प्रेम–क्रिया
विशेषण बनने की जगह, विस्मयादिबोधक बना रही!
एकरूपता के अभाव ने
अव्ययीभाव बनने ही न दिया,
संयोजक कहां से बनेगा?
दर असल, रूढ़ि शब्द है यह!
संधि की छोड़िए,
और समास की सोचिए।
२४ अप्रैल २००४ |