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शब्द

 

शब्द

शब्दों से बनी है दुनिया,
और हम सभी शब्द ही हैं –
कई सार्थक,
कई निरर्थक,
और कई अपरिभाषित।
शब्द चेतन मन का दृश्य है, और दर्शन भी।
अवचेतन मन हर्ष और विषाद को
कहाँ आंतरिक करता है!
मन की उमंग,
विचार–तरंग,
संबंधों का आदि–अंत
शब्दों से ही परिभाषित है।
प्रेम की अभिव्यक्ति है यह
और प्रिया का अयन भी।
शब्द मौन हो जाते हैं कई बार . . .
बड़े अर्थ की तलाश में या दीर्घ व्याख्या के लिये।
मौन को तोड़कर, मैं देता हूं कुछ शब्द
आकांक्षित सुख, अगनित खुशियाँ और
उद्बोधित जीवन।

२४ अप्रैल २००४

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