अनुभूति में
दीपक
वाईकर
की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
दिवाली ही दिवाली
महाशक्तिमान
माँ का दिल
सावन कब फिर से आए
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सावन कब फिर से आए
मेघ जब गरजे
बिजली जब चमके
बादल जब बरसे
सावन जब आए
धरती जब महके
हरयाली जब फैले
मोर जब नाचे
सावन जब आए
किसान जब बोए
खेत जब लहलहाए
पंछी जब गाए
सावन जब आए
नदीयाँ जब उछले
बाढ़ जब आए
तबाही मचाए
लगे सावन कब जाए
फूल जब खिले
तितलीयाँ जब उड़े
भँवरें जब झूमे
सावन जब जाए
फल जब पके
कोयल जब गुनगुनाए
सब खुशियाँ मनाए
बसंत जब आए
ऋतु जब बदले
गर्मी ले आए
पानी को तरसाए
लगे फिर
सावन कब फिर से आए
१६ सितंबर २००५ |