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अनुभूति में दीपक वाईकर की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
दिवाली ही दिवाली
महाशक्तिमान
माँ का दिल
सावन कब फिर से आए

 

दिवाली ही दिवाली

स्वच्छ करो हर घर साफ़ करो हर गली
मन को शुद्ध करने आती है दिवाली

धो करके आंगन में सजाओ रंगोली
शुभ मुहूर्त ले कर आती है दिवाली

हातो में कंगन और कानों में पहन कर बाली
लक्ष्मी का रूप ले कर आती है दिवाली

मस्तक पर टीका हाथों में पूजा की थाली
पूजा का पाठ सुनाने आती है दिवाली

प्रज्वलित करो दीपमाला रात लगे न काली
अंधसंस्कार को नष्ट करने आती है दिवाली

इतनी बाटों मिठाइयां खाली न रहे कोई झोली
अतिथि का स्वागत करने आती है दिवाली

उड़ाओ ऐसे पटाखे न हो किसी की होली
समाज को जाग्रत करने आती है दिवाली

बन जाओ इतने सक्षम कि न फैलानी पड़े झोली
ज्ञान का प्रसार करने आती है दिवाली

बोलो एक दूसरे से सदा प्यार की बोली
प्रेम का संदेशा देने आती है दिवाली

ऐसे जियो जीवन जीना न लगे खाली
जीवन को दृष्टि देने आती है दिवाली

जो यह समझ जाए है वह भाग्यशाली
हर पल तो उसके लिए है दिवाली ही दिवाली
शुभ दिवाली

२४ अक्तूबर २००५

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