अनुभूति में
दीपक
वाईकर
की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
दिवाली ही दिवाली
महाशक्तिमान
माँ का दिल
सावन कब फिर से आए
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महाशक्तिमान देश
पचास बरसों की
हैं हमारी आज़ादी।
सौ करोड़ की
हैं हमारी आबादी।
नहीं दे पाए हम सबको
रोटी, कपड़ा और मकान।
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
आधे से ऊपर न
पढ़ पाते हैं कोई अक्षर।
करोड़ो लगाते हैं
नौकरी के लिए चक्कर।
नहीं दे पाए अगर
सबको शिक्षा और ज्ञान।
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
नहीं मिलता हो जब
गरीबों को औषध और इलाज।
घर–घर और गली–गली में न हो
जब स्वच्छता का अहसास।
नहीं बना पाए सबको
अगर तंदुरुस्त और बलवान।
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
हैं हमारे पास
उपग्रह और परमाणु अस्त्र।
कहां है तनपर सबके
पहनने को वस्त्र?
खाद, पानी और बिजली की कमी
महसूस करे जब किसान।
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
हर क्षेत्र में फैला हो
जब भाई भतीजावाद।
कर रहा है जो
सारे देश को ही बरबाद।
क़ाबिलियत की न रहे
कोई कदर या पहचान।
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
जब राजनेता और
अधिकारी हो भ्रष्टाचारी।
जिन्हें तो है सिर्फ़
अपनी कुर्सी ही प्यारी।
आम नागरिक जब हो
समस्याओं से परेशान।
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
व्यापार में जब हो
धाँधली और कालाबाज़ार।
घाटे में चलती रहे
हमारी अर्थनीति बार बार।
विदेशी कर्जों में डूबा हो
शताब्दियों से हिंदुस्तान।
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
ठीक से नहीं चलने देते नेता हमारे
संसद का सत्र।
हर समस्या पर हैं इनके पास
आरक्षण का मंत्र।
अपराधियों से भरा हो जब
संसद भवन जैसा स्थान।
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
लड़ते हैं हम भाषा, जाति
और धर्म के नामपर।
ले जा रहा है यह देश को
विनाश की राह पर।
क्या रहेगा फिर कहीं भी
इस देश का सम्मान?
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
आतंकवाद को मिटाने की न है
कोई ठोस रीति।
अंतर्राष्ट्रीय दबाव में झुकी हो
जब हमारी राजनीति।
बलि चढ़ रहे हों इनमें
आम जनता और जवान।
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
विदेशनीति में न हो
कोई जान या दम।
लेते रहते हैं नाम
"शिमला–करार" का हरदम।
ज़मीनपर कब्ज़ा करे हुए हो
जब चीन और पाकिस्तान।
कैसे बनाएँ हम
इस देश को महाशक्तिमान?
निकालेंगे अगर हम
ऐसे समस्याओं पर समाधान।
होंगे हमारे व्यवहार में सदा
सच्चाई, हिम्मत और ईमान।
होंगे सब तैयार जब करने को
परिश्रम, त्याग और बलिदान।
क्या रोक पाएगा कोई
भारत को बनने से महाशक्तिमान।।
२४ अप्रैल २००५ |