अनुभूति में
दीपक
वाईकर
की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
दिवाली ही दिवाली
महाशक्तिमान
माँ का दिल
सावन कब फिर से आए
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माँ का दिल
दूध से भी सफ़ेद
मक्खन से भी मुलायम
शहद से भी मीठा
है माँ का दिल।
जल से भी शीतल
हवा से भी चंचल
ब्रह्मांड से भी विशाल
हैं माँ का दिल
सागर से भी गहरा
गगन से भी ऊँचा
प्यार का भंडार
हैं माँ का दिल।
परिवार की शान
बच्चों पर कुर्बान
दिलों का दिल
हैं माँ का दिल।
२ मई २००५ |