अनुभूति में
भाविक देसाई की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अस्तित्व
कल्पना की सीमा
ख़ुदी
प्रेम
मेरे शब्दों के पूर्वज
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ख़ुदी
आज मैं
अपने ही कंधे पर रोया
ख़ुद ही को भिगोया
ख़ुद ही को हाथ दिया
ख़ुद ही को सहारा भी
ख़ुद ही को मुस्कान दी
ख़ुद ही पर मुस्कुरा भी दिया
ख़ुद ही से बोल दिया
ख़ुद ही को दिया मौन भी
ख़ुद ही को दिल दिया
दिलासा भी ख़ुद ही को दिया
प्रेम
यदि
देने का नाम है तो
आज मुझे ख़ुद से प्रेम हुआ…
१ अगस्त २०२३
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