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वो पुराना घर
मेरे ख़यालों में अब भी
बसा हुआ है गाँव का
वो पुराना घर
खुला आँगन, चारों तरफ़
कमरे ही कमरे
गेट के पास नीम का पेड़
पेड़ पे चहचहाती चिड़िया
बरसात में कउओं के बीच
छत से टपकता पानी,
गेट के दुसरी तरफ़ वो बैठक
बैठक मे कपड़े सिलता कल्लू दर्ज़ी
साल में दो बार आता था वो
कुछ नए कपड़े सिल जाता
कुछ पुरानो में टाकिया लगा जाता
महीने में एक बार आता था
उस बैठक में हरिया नाई
बाल करवाने के डर से
मैं छिप जाता था खुरली में
जहाँ भैंसो के लिए चारा डालते बाबा
फिर पकड़ कर ले आते हरिया के पास
एक कोने में चक्की पीसती दादी माँ
मुर्गियों को दाना डालती ताई
छत पे कपड़े इकट्ठे करती चाची
पंचायत मे हुक्का गुडगुड़ाते ताऊ जी
बैलों के सींग पे काला तेल
लगाते चाचा
चूल्हे पे पानी गर्म करती दादी
सब कुछ कहीं पीछे छूट गया
पर अब भी बसा है खयालों में
24 मई 2007
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