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बचपन का साथी
बचपन की यादों का सफ़र
अक्सर उस रेत के टिब्बे
पे जाकर रुकता है
जहाँ कभी हम,
छोटे-छोटे घरौंदे बनाते थे
मेरा घरौंदा अक्सर
उसके घरौंदे से
कम सुंदर बनता
मुझे मायूस देख वो
अपना घरौंदा तोड़ देती
मेरी मायूसी और बढ़ जाती
तो वह मेरा घरौंदा भी
गिरा देती व कहती,
"क्यों न हम एक घरौंदा
ही बनाए"
फिर वो मुस्कुरा कर
अपना नन्हा पाँव
मेरे पाँव से जोड़ देती
फिर जो घरौंदा बनता
उसे देख मै खिल उठता!
24 मई 2007
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