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गाँव का कुआँ
बरसों बाद आज
आज गाँव जाना हुआ
रास्ते भर बचपन की यादें
आँखो के आगे लहराती रही
वो पीपल का पेड़
जिसकी छाया में दोस्तों संग
पिट्ठू खेला करता था
वो कुआँ जिसका मीठा पानी
पी कर जवान हुआ
वो तालाब में भैंसों को नहलाना
नसूड़े के पेड़ पर चढ़
नसूडे तोड़ कर लाना
नसूडे के रस से
पतंग बनाना, पेचे लड़ाना
इन्हीं यादों में खोया गाँव पहुँचा
तो मन उदास हो गया
तालाब के पानी से बदबू आ रही थी
न पीपल का पेड रहा न नसूडे का पेड़
न ही रहा वो कुआँ
वहाँ पर एक फास्ट फूड कार्नर
बन गया है!
वहाँ कुछ देर रुक कर
पैप्सी पीते हुए
कुएँ के पानी की वो मीठास
याद आ गई
जिसके आगे यह पेप्सी
फीकी-सी लगी!
24 मई 2007
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