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अनुभूति में विजय सिंह की रचनाएँ

छंद मुक्त में-
डोकरी फूलो
पक रहा है जंगल
बेटे की हँसी में
शांत जंगल को
हँस रहा हूँ मैं

 

 

हँस रहा हूँ मैं
(सूरज के लिए)

पल-पल मुश्किल समय में

अकेला नहीं हूँ
सूरज की हँसी है
मेरे पास

सूरज की हँसी
तीरथगढ़ का जलप्रपात है
जहाँ मैं डूबता-उतराता हूँ
और भूल जाता हूँ
अपनी थकान

सूरज हँस रहा है
हँस रहा है घर
हँस रहा है आस-पड़ोस
हँस रहे हैं लोग-बाग
हँस रहे हैं आसमान में उड़ते पक्षी
हँस रहा हूँ मैं

हँस रही है पृथ्वी इस समय।

१५ दिसंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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