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बेटे की हँसी में
(यश के लिए)
अँधेरे की काया पहन
चमकीले फूल की तरह
खिल उठती है रात
अँधेरा, धीरे से लिखता है
आसमान की छाती पर
सुनहरे अक्षरों से
चाँद-तारे
और
मेरी खिड़की में
जगमग हो उठता है
आसमान
अक्सर रात के बारह बजे
मेरी नींद टूटती है
खिड़की में देखता हूँ
चाँद को
तारों के बीच
हँसते-खिलखिलाते
ठीक इसी समय
नींद में हँसता है मेरा बेटा
बेटे की हँसी में
हँसता है मेरा समय। १५ दिसंबर २००८ |