|
डोकरी फूलो
धूप हो या बरसात
ठंड हो या लू
मुड़ में टुकनी उठाए
नंगे पाँव आती है
दूर गाँव से शहर
दोना-पत्तल बेचने वाली
डोकरी फूलो
डोकरी फूलो को
जब भी देखता हूँ
देखता हूँ, उसके चेहरे में
खिलता है जंगल
डोकरी फूलो
बोलती है
बोलता है जंगल
डोकरी फूलो
हँसती है
हँसता है जंगल
क्या आपकी तरफ़
ऐसी डोकरी फूलो है
जिसके नंगे पाँव को छूकर, जंगल
आपकी देहरी को
हरा-भरा कर देता है?
हमारे यहाँ
एक नहीं
अनेक ऐसी डोकरी फूलो हैं
जिनकी मेहनत से
हमारा जीवन
हरा-भरा रहता है ।
१५ दिसंबर २००८ |