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अनुभूति में वीना विज 'उदित' की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
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अन्ततः
जीवनदान
तुम्हारा मेरा सच
सन्नाटों के पहरेदार
स्मृतिदंश

 

 

जीवन दान

जीवन जीते हैं
अर्थ निरर्थक है
सहारे की आस में
टूट चुके हैं।
मरू में बहक गए थे,
बहुत छला है
मृगतृष्णा ने हमको
पैरों के रिसते
छालों के जल ने
तपते पावों में
हल्की ठंडक दी है।
जलते हैं अब
क्या वृष्टिछाया न दोगे . . .?
अंधियारी स्याह
रात की कालिमा में,
मायावी बन
जीवन को लूट लिया।
सेंध लगी
गठरी रीती,
आँचल तो था
अनकही पीड़ा को,
क्या जान सकोगे न कभी . . .?
पल–पल मरते हैं,
क्या जीवन–दान न दोगे . . .?

१६ मार्च २००४

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