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अनुभूति में तृषान्निता बनिक की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
अदालत तले अँधेरा
खलता था...खल रहा है...खलेगा
तुम्हारे दो काले बादल
दो रोटियाँ
 

 

खलता था… खल रहा है... खलेगा

मुझे खलता था तुम्हारा हर सुबह
मुझे नींद से जगा देना
तुम्हें तुम्हारी चाय बना देने के लिए
वैसे चाय बनाने से मुझे कोई ऐतराज़ तो नहीं
पर, हफ़्ते में किसी एक दिन भी
सुबह की चाय हम दोनों के लिए तुम बनाते
तो 'शायद' खलना बंद हो जाता!

मुझे खलता था ऑफिस जाने से पहले
तुम्हारा मेरे लिए अपने प्लेट में जूठा खाना छोड़ जाना
वैसे तुम्हारे जूठा खाने से मुझे कोई ऐतराज़ तो नहीं
पर अगर उसे छोड़ते हुए प्यार से पूछते
"मुझसे खाया नहीं गया, क्या तुम खा लोगी?
तो 'शायद' खलना बंद हो जाता

मुझे खलता था तुम्हारा ऑफिस से लौटते ही
अपने ऑफिस की झंझटों,
सफ़र की जद्दोजहदों के किस्से सुनाते हुए
मुझी पर सारी भड़ासे निकाल देना
वैसे तुम्हारे दिन-भर के किस्से सुनने से मुझे कोई ऐतराज़ तो नहीं
पर (उसके बाद)
कभी मेरी दिनचर्या भी जानने में रुचि दिखाते
तो 'शायद' खलना बंद हो जाता

मुझे खलता था रात के भोजन के बाद
तुम्हारा टीवी या उपन्यास लेकर बैठ जाना
वैसे तुम्हारे टीवी देखने या उपन्यास पढ़ने से
मुझे कोई ऐतराज़ तो नहीं
पर कभी बर्तनों की सफाई या बिस्तर तैयार करने में
हाथ बटा देते
तो 'शायद' खलना बंद हो जाता

मुझे खलता था सिर्फ़ रात को ही सोते वक्त तुम्हारा
मुझसे (कामुक) प्यार जताना
वैसे तुम्हारे प्यार जताने से मुझे कोई ऐतराज़ तो नहीं
पर सुबह निकलते वक्त या दिन-भर में फोन पर कभी भी प्यार जता देते
तो 'शायद' खलना बंद हो जाता

पर आज
अपनी अनुभूतियों को कविता का रूप देते हुए
मुझे कुछ और खल रहा है
मुझे अपनी ही कविता में 'शायद' शब्द खल रहा है
आज मुझे तुम्हारा नहीं,
अपना गलत होना खल रहा है!

मुझे खल रहा है
मेरा इतने सालों से तुम्हारे आगे चुप रह जाना
अपने आत्मसम्मान से समझौता कर लेना
तुम्हारे अन्यायों को अपना भाग्य मान लेना
मुझे खल रहा है मेरा कभी तुमसे "ना" नहीं कह पाना!

मुझे खल रहा है
मेरा अब तक अपने लिए आवाज़ न उठाना,
यह जानते हुए भी कि तुम मेरे स्त्री होने को मेरा कमतर होना समझते हो,
अपने अचेतन मन में पत्नी धर्म को
दासत्व का पर्याय मानते हो
मुझे खल रहा है
कि मैंने ज़रा-से प्रेम के बदले
वह सब कुछ मान लेना स्वीकार कर लिया था!
मुझे खल रहा है मेरा स्वयं 'पितृसत्तात्मक' होना।

पर खुशी इस बात की है, कि
आज से
अभी से
और 'निश्चित' रूप से,
यह खलना कभी बंद नहीं होगा।
और जितनी बार मुझे खलेगा, उतनी बार मेरा मुँह खुलेगा।

१ अगस्त २०२३

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