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अनुभूति में तृषान्निता बनिक की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
अदालत तले अँधेरा
खलता था...खल रहा है...खलेगा
तुम्हारे दो काले बादल
दो रोटियाँ
 

 

दो रोटियाँ

दो रोटियाँ होती थीं, मेरी थाली में—
गर्म, फूली हुई, भाप उठाती
दो रोटियाँ परोसी जाती थीं
घर के सभी सदस्यों की थाली में
दो रोटियाँ रहती थीं, केसरोल में कैद
कुछ ठंडी, कुछ सख़्त
प्रतीक्षारत
अपनी बनाने वाली की याद में

दो रोटियाँ पड़ी है सड़क के किनारे
एक कौवा उसे पंजे-चोंच से खरोंचता है
एक पूँछ कटा, कीचड़ सना कुत्ता उसे सूँघता है
एक अपाहिज भिखारी बेबसी में एकटक देखता है
दो रोटियाँ पड़ी हैं कूड़ेदान के भीतर
ठंडी-सूखी-बदबूदार
प्रतीक्षारत
अपने ले जाने वाले की आस में

दो रोटियाँ रखी हैं किमती चीनी-मिट्टी की प्लेट पर
मोटी, अंडाकार, जीरा-धनिया-मक्खन चुपड़ कर
दो रोटियाँ भरी गई हैं
मिकी माऊस बने टिफिन-बॉक्स में
आलू-सॉस से भरकर, लपेटी गई हैं फोयल में
दो रोटियाँ फेंकी गई हैं, सलाखों के आगे
टेढ़ी एल्मूनिय की थाली पर
ठंडी-सूखी-सख़्त
पड़ी है
प्रतीक्षारत
अपने चबाने वाले की चाहत में

दो रोटियाँ सजी है स्टील के दो मंज़िलें बक्से में
सब्ज़ी-अचार और शाम सात वाली
डोरबेल के इंतज़ार के साथ
दो रोटियाँ बाँध दी गई हैं गमछे की पोटली में
नमक-मिर्च-प्याज़
प्रेम और चिंतित आत्मीयता के साथ
दो रोटियाँ बनी हैं मेरे हाथों से
बड़ी सावधानी और लगन के साथ
कुछ गोल-कुछ नर्म
अचूक प्रेरक—
कार्यरत
मेरी चेतना और कलम में

१ अगस्त २०२३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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