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अनुभूति में तनहा अजमेरी की रचनाएँ-

छंद मुक्त में-
कभी देखना
कुछ खास लोग
दोस्ती
मनुष्य
मैं एक जगह टिक कर बैठूँ कैसे
मैंने मन को बाँध लिया है
ये क्या धुन सवार हो गई

  मैं एक जगह टिक कर बैठूँ कैसे

मैं एक जगह टिक कर बैठूँ कैसे

पहले मौसम से कहों कि वह न बदले,
बारिश न हो और सूरज न ढ़ले
रात मे तारे न हों नभ पर,
पहले समय से कहो कि वह न बदले,
क्या तुम कर सकते हो ऐसे?

मैं एक जगह टिक कर बैंठूँ कैसे?
मुझे इंद्रधनुषी रंग पसंद हैं
मौसम सर्द और गर्म पसन्द हैं
मुझको कोयल के गाने की चाह है
जाऊं हर उस जगह जहाँ राह है
एक जगह इन सबको बुलाऊँ कैसे?

मैं एक जगह टिक कर बैठूँ कैसे?
मुझे कठपुतली का नाच पसन्द है
नया पुराना हर साज़ पसन्द है
पर्वत नदियाँ नाले पसन्द हैं
दोस्त सब गोरे काले पसन्द हैं
बच्चे प्यारे प्यारे पसन्द हैं
मैं किसी से नफ़रत करूँ तो कैसे?

मैं एक जगह टिक कर बैठूँ कैसे?
मुझे हर पगडन्डी अच्छी लगती है
हर नई सड़क मुझे जँचती है
लुभाती है मुझे सब गलियाँ
नाच, तमाशे और रंग-रलियाँ
मैं थक कर रुक जाऊँ कैसे?

मैं एक जगह टिक कर बैठूँ कैसे?
मुझे खेत और खलिहान पसंद है
दद्दू का घर और ननिहाल पसंद है।
असम, बिहार, बंगाल पसंद है।
मुझको पूरा हिंदुस्तान पसंद है
एक जगह बँध रह जाऊँ कैसे?

मैं एक जगह टिक कर बैंठूँ कैसे?
रो-रोकर जीना मुझे आता नहीं है
घुट-घुट कर मरना भाता नहीं है
मैं व्यापारी, साहूकार नहीं हूँ
जेब में दाब रख लूँ क्यों पैसे,
तुम रहते हो मैं रहूँ वैसे?

मैं एक जगह टिक कर बैंठूँ कैसे?

४ जनवरी २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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